২৮৮

পরিচ্ছেদঃ

২৮৮। আবদুল্লাহ ইবনে আবি মুলাইকা বলেন, আমি আবদুল্লাহ ইবনে উমার (রাঃ) এর সাথে উসমান ইবনে আফফান (রাঃ) এর মেয়ে উম্মু আবানের জানাযার জন্য অপেক্ষমান ছিলাম। আমর ইবনে উসমান এ সময় তাঁর কাছে ছিলেন। এ সময়ে নির্দিষ্ট পথ প্রদর্শকের সহায়তায় ইবনুল আব্বাস সেখানে উপস্থিত হলেন। আমার জানা মতে, তাকে ইবনে উমারের অবস্থানস্থল জানিয়ে দেয়া হলো। তিনি এলেন এবং আমার পাশেই বসলেন। আমি তাদের দু’জনের মাঝখানে ছিলাম। সহসা ঘরের ভেতর থেকে (কান্নার) আওয়াজ শোনা গেল। তৎক্ষণাত ইবনে উমার (রাঃ) বললেন, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছি, মৃত ব্যক্তির স্বজনেরা তাঁর জন্য কান্নাকাটি করলে তার ওপর আযাব হয়। আবদুল্লাহ ইবনে উমার এ কথাটা বললেন সাধারণভাবে। (অর্থাৎ আপনজন কাঁদলেই তার ওপর আযাব হয়।)

ইবনুল আব্বাস বললেন, আমরা আমীরুল মুমিনীন উমারের সাথে ছিলাম। অতঃপর যখন আমরা মরুভূমিতে পৌছলাম, দেখলাম, তিনি গাছের ছায়ায় বিশ্রামরত এক ব্যক্তিকে দেখছেন। তিনি আমাকে বললেন, ওর কাছে যাও তারপর অবহিত হও সে কে। আমি গেলাম, দেখলাম সে সুহাইব। অতঃপর আমি তাঁর কাছে ফিরে এলাম। বললাম, আপনি আমাকে আদেশ দিয়েছিলেন যেন ঐ ব্যক্তিকে অবহিত হই। আমি জেনেছি, সে সুহাইব। তিনি বললেন, সুহাইবকে আদেশ দাও আমাদের সাথে যোগ দিক। আমি বললাম, তার সাথে তার পরিবার রয়েছে। তিনি বললেন, তার পরিবার তার সাথে থাকলেও আমাদের সাথে যোগ দিতে বল।

অতঃপর আমরা মদীনায় পৌছার অব্যবহিত পরই আমীরুল মুমিনীন আহত হলেন। তৎক্ষণাত সুহাইব এল এবং বললো, হায় আফসোস! হায় আমার সাথী! উমার (রাঃ) বললেন, তুমি কি জাননা, তুমি কি শোননি, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন, মৃত ব্যক্তি তার পরিবারের কিছু কিছু কান্নার কারণে আযাব ভোগ করে? আবদুল্লাহ ইবনে উমার সাধারণভাবে বলেছিলেন। কিন্তু উমার বললেন, কিছু কান্নাকাটির কারণে।

এর অব্যবহিত পরেই আমি আয়িশা (রাঃ) এর নিকট উপস্থিত হলাম এবং উমার (রাঃ) যা বলেছেন, তা তাকে জানালাম। আয়িশা (রাঃ) তৎক্ষণাত বললেন, না, আল্লাহর কসম, রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এ কথা বলেননি যে, কারো কান্নার কারণে মৃত ব্যক্তিকে আযাব দেয়া হয়। বরং রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন, কাফিরকে আল্লাহ তার পরিবারের কান্নার কারণে আযাব বাড়িয়ে দেন। আর আল্লাহই মানুষকে হাসান ও কাদান। আল্লাহ বলেছেন, একজন আর একজনের পাপের ফল ভোগ করে না।

বর্ণনাকারী আইউব ও আবু মুলাইকা বলেন বলেন, আয়িশা যখন উমার ও ইবনে উমারের কথাটা শুনলেন, তখন বললেন, তোমরা যে দু’জনের কাছ থেকে হাদীস বর্ণনা করেছ তারা মিথ্যুকও নন, মিথ্যুক বলে প্রত্যাখ্যাতও নন, তবে অনেক সময় কান শুনতে ভুল করে থাকে।

[বুখারী-১২৮৭, মুসলিম-৯২৮, ইবনু হিব্বান-৩১৩৬, মুসনাদে আহমাদ-২৯০]

حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ، حَدَّثَنَا أَيُّوبُ، عَنْ عَبْدِ اللهِ بْنِ أَبِي مُلَيْكَةَ، قَالَ: كُنْتُ عِنْدَ عَبْدِ اللهِ بْنِ عُمَرَ، وَنَحْنُ نَنْتَظِرُ جَنَازَةَ أُمِّ أَبَانَ ابْنَةِ عُثْمَانَ بْنِ عَفَّانَ، وَعِنْدَهُ عَمْرُو بْنُ عُثْمَانَ، فَجَاءَ ابْنُ عَبَّاسٍ يَقُودُهُ قَائِدُهُ، قَالَ: فَأُرَاهُ أَخْبَرَهُ بِمَكَانِ ابْنِ عُمَرَ، فَجَاءَ حَتَّى جَلَسَ إِلَى جَنْبِي وَكُنْتُ بَيْنَهُمَا، فَإِذَا صَوْتٌ مِنَ الدَّارِ، فَقَالَ ابْنُ عُمَرَ: سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: إِنَّ الْمَيِّتَ يُعَذَّبُ بِبُكَاءِ أَهْلِهِ عَلَيْهِ " فَأَرْسَلَهَا عَبْدُ اللهِ مُرْسَلَةً

قَالَ ابْنُ عَبَّاسٍ: كُنَّا مَعَ أَمِيرِ الْمُؤْمِنِينَ عُمَرَ، حَتَّى إِذَا كُنَّا بِالْبَيْدَاءِ إِذَا هُوَ بِرَجُلٍ نَازِلٍ فِي ظِلِّ شَجَرَةٍ، فَقَالَ لِي: انْطَلِقْ فَاعْلَمْ مَنْ ذَاكَ. فَانْطَلَقْتُ فَإِذَا هُوَ صُهَيْبٌ، فَرَجَعْتُ إِلَيْهِ، فَقُلْتُ: إِنَّكَ أَمَرْتَنِي أَنْ أَعْلَمَ لَكَ مَنْ ذَاكَ، وَإِنَّهُ صُهَيْبٌ. فَقَالَ: مُرُوهُ فَلْيَلْحَقْ بِنَا. فَقُلْتُ: إِنَّ مَعَهُ أَهْلَهُ. قَالَ: وَإِنْ كَانَ مَعَهُ أَهْلُهُ - وَرُبَّمَا قَالَ أَيُّوبُ: مَرَّةً فَلْيَلْحَقْ بِنَا - فَلَمَّا بَلَغْنَا الْمَدِينَةَ لَمْ يَلْبَثْ أَمِيرُ الْمُؤْمِنِينَ أَنْ أُصِيبَ، فَجَاءَ صُهَيْبٌ فَقَالَ: وَا أَخَاهُ، وَا صَاحِبَاهُ. فَقَالَ عُمَرُ: أَلَمْ تَعْلَمْ، أَوَلَمْ تَسْمَعْ - أَوْ قَالَ: أَوَلَمْ تَعْلَمْ، أَوَلَمْ تَسْمَعْ - أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: " إِنَّ الْمَيِّتَ لَيُعَذَّبُ بِبَعْضِ بُكَاءِ أَهْلِهِ عَلَيْهِ "؟ فَأَمَّا عَبْدُ اللهِ فَأَرْسَلَهَا مُرْسَلَةً، وَأَمَّا عُمَرُ فَقَالَ: " بِبَعْضِ بُكَاءِ
فَأَتَيْتُ عَائِشَةَ فَذَكَرْتُ لَهَا قَوْلَ عُمَرَ، فَقَالَتْ: لَا وَاللهِ، مَا قَالَهُ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، أَنَّ الْمَيِّتَ يُعَذَّبُ بِبُكَاءِ أَحَدٍ، وَلَكِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: " إِنَّ الْكَافِرَ لَيَزِيدُهُ اللهُ عَزَّ وَجَلَّ بِبُكَاءِ أَهْلِهِ عَذَابًا " وَإِنَّ اللهَ لَهُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَى، (وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى) [الأنعام: 164]
قَالَ أَيُّوبُ: وَقَالَ ابْنُ أَبِي مُلَيْكَةَ: حَدَّثَنِي الْقَاسِمُ، قَالَ: لَمَّا بَلَغَ عَائِشَةَ قَوْلُ عُمَرَ وَابْنِ عُمَرَ، قَالَتْ: إِنَّكُمْ لَتُحَدِّثُونِي عَنْ غَيْرِ كَاذِبَيْنِ وَلا مُكَذَّبَيْنِ، وَلَكِنَّ السَّمْعَ يُخْطِئُ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. أيوب: هو ابن أبي تميمة السختياني
وأخرجه مسلم (928) (22) ، والبيهقي 4 / 73 من طريق إسماعيل بن علية، بهذا الإسناد
وأخرجه النسائي 4 / 18 - 19، وابن حبان (3136) من طريقين عن عبد الله بن أبي مليكة، به. وانظر ما بعده
قولها: " لا والله "، قال السندي: حَلَفَت على الظن، ولا إثم على الظن، وهي زعمت أن الحديث معارض للقرآن، فلا يمكن أن يكون من قوله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وقد سمعت حديثاً آخر فزعمت أن هذا الحديث تغير منه، والحديث قد جاء من طرق كثيرة عن صحابة عديدة، فلا يمكن القول بأنه مما غلط فيه عمر أو ابنه، وَلا معارضة بينه وبين القرآن بأن يحمل على ما إذا أَوصى بالبكاء، أو علم من حال أهله أنهم يبكون ولم يوصِ بتركه، وقد ذكر العلماءُ له محاملَ أُخَر أيضا

حدثنا اسماعيل، حدثنا ايوب، عن عبد الله بن ابي مليكة، قال: كنت عند عبد الله بن عمر، ونحن ننتظر جنازة ام ابان ابنة عثمان بن عفان، وعنده عمرو بن عثمان، فجاء ابن عباس يقوده قاىده، قال: فاراه اخبره بمكان ابن عمر، فجاء حتى جلس الى جنبي وكنت بينهما، فاذا صوت من الدار، فقال ابن عمر: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ان الميت يعذب ببكاء اهله عليه " فارسلها عبد الله مرسلة قال ابن عباس: كنا مع امير المومنين عمر، حتى اذا كنا بالبيداء اذا هو برجل نازل في ظل شجرة، فقال لي: انطلق فاعلم من ذاك. فانطلقت فاذا هو صهيب، فرجعت اليه، فقلت: انك امرتني ان اعلم لك من ذاك، وانه صهيب. فقال: مروه فليلحق بنا. فقلت: ان معه اهله. قال: وان كان معه اهله - وربما قال ايوب: مرة فليلحق بنا - فلما بلغنا المدينة لم يلبث امير المومنين ان اصيب، فجاء صهيب فقال: وا اخاه، وا صاحباه. فقال عمر: الم تعلم، اولم تسمع - او قال: اولم تعلم، اولم تسمع - ان رسول الله صلى الله عليه وسلم، قال: " ان الميت ليعذب ببعض بكاء اهله عليه "؟ فاما عبد الله فارسلها مرسلة، واما عمر فقال: " ببعض بكاء فاتيت عاىشة فذكرت لها قول عمر، فقالت: لا والله، ما قاله رسول الله صلى الله عليه وسلم، ان الميت يعذب ببكاء احد، ولكن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: " ان الكافر ليزيده الله عز وجل ببكاء اهله عذابا " وان الله لهو اضحك وابكى، (ولا تزر وازرة وزر اخرى) [الانعام: 164] قال ايوب: وقال ابن ابي مليكة: حدثني القاسم، قال: لما بلغ عاىشة قول عمر وابن عمر، قالت: انكم لتحدثوني عن غير كاذبين ولا مكذبين، ولكن السمع يخطى اسناده صحيح على شرط الشيخين. ايوب: هو ابن ابي تميمة السختياني واخرجه مسلم (928) (22) ، والبيهقي 4 / 73 من طريق اسماعيل بن علية، بهذا الاسناد واخرجه النساىي 4 / 18 - 19، وابن حبان (3136) من طريقين عن عبد الله بن ابي مليكة، به. وانظر ما بعده قولها: " لا والله "، قال السندي: حلفت على الظن، ولا اثم على الظن، وهي زعمت ان الحديث معارض للقران، فلا يمكن ان يكون من قوله صلى الله عليه وسلم، وقد سمعت حديثا اخر فزعمت ان هذا الحديث تغير منه، والحديث قد جاء من طرق كثيرة عن صحابة عديدة، فلا يمكن القول بانه مما غلط فيه عمر او ابنه، ولا معارضة بينه وبين القران بان يحمل على ما اذا اوصى بالبكاء، او علم من حال اهله انهم يبكون ولم يوص بتركه، وقد ذكر العلماء له محامل اخر ايضا

হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
মুসনাদে আহমাদ
মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)