৯৩৭

পরিচ্ছেদঃ ১৮. হিবা বা দান, উমরী বা আজীবন দান ও রুকবা দানের বিবরণ - হাদিয়া (উপহার) দেয়া মুস্তাহাব এবং এর প্রভাব

৯৩৭। আবূ হুরাইরা (রাঃ) থেকে বর্ণিত, তিনি বলেন, রসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন- হে মুসলিম নারীগণ! কোন মহিলা প্রতিবেশিনী যেন অপর মহিলা প্রতিবেশিনীর হাদিয়া তুচ্ছ মনে না করে, এমনকি তা ছাগলের সামান্য মাংসযুক্ত হাড় হলেও।[1]

وَعَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ - رضي الله عنه - قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ - صلى الله عليه وسلم: «يَا نِسَاءَ الْمُسْلِمَاتِ! لَا تَحْقِرَنَّ جَارَةٌ لِجَارَتِهَا وَلَوْ فِرْسِنَ شَاةٍ». مُتَّفَقٌ عَلَيْهِ

-

صحيح رواه البخاري (2566)، ومسلم (1030) و «فرسن»: قال الحافظ في «الفتح»: «بكسر الفاء والمهملة بينهما راء ساكنة وآخره نون، وهو: عُظَيْمٌ قليل اللحم، وهو للبعير موضع الحافر للفرس، ويطلق على الشاة مجازا، ونونه زائدة وقيل: أصلية، وأشير بذلك إلى المبالغة في إهداء الشيء اليسير وقبوله لا إلى حقيقة الفرسن؛ لأنه لم تَجْر العادة بإهدائه، أي: لا تمنع جارة من الهدية لجارتها الموجود عندها لاستقلاله، بل ينبغي أن تجود لها بما تيسر، وإن كان قليلًا فهو خير من العدم، وذكر الفرسن على سبيل المبالغة

وعن ابي هريرة - رضي الله عنه - قال: قال رسول الله - صلى الله عليه وسلم: «يا نساء المسلمات! لا تحقرن جارة لجارتها ولو فرسن شاة». متفق عليه - صحيح رواه البخاري (2566)، ومسلم (1030) و «فرسن»: قال الحافظ في «الفتح»: «بكسر الفاء والمهملة بينهما راء ساكنة واخره نون، وهو: عظيم قليل اللحم، وهو للبعير موضع الحافر للفرس، ويطلق على الشاة مجازا، ونونه زاىدة وقيل: اصلية، واشير بذلك الى المبالغة في اهداء الشيء اليسير وقبوله لا الى حقيقة الفرسن؛ لانه لم تجر العادة باهداىه، اي: لا تمنع جارة من الهدية لجارتها الموجود عندها لاستقلاله، بل ينبغي ان تجود لها بما تيسر، وان كان قليلا فهو خير من العدم، وذكر الفرسن على سبيل المبالغة

হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)
বর্ণনাকারীঃ আবূ হুরায়রা (রাঃ)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
বুলুগুল মারাম
পর্ব - ৭ঃ ক্ৰয়-বিক্রয়ের বিধান (كتاب البيوع)