১৪৬২

পরিচ্ছেদঃ বিশেষ বিশেষ সূরা ও আয়াত পাঠ করার উপর উৎসাহ দান

(১৪৬২) আবূ হুরাইরা (রাঃ) হতে বর্ণিত, তিনি বলেন, (একবার) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে রমযানের যাকাত (ফিৎরার মাল-ধন) দেখাশোনা করার দায়িত্ব দেন। বস্তুতঃ (আমি পাহারা দিচ্ছিলাম ইত্যবসরে) একজন আগমনকারী এসে আঁজলা ভরে খাদ্যবস্তু নিতে লাগল। আমি তাকে ধরলাম এবং বললাম, ’তোকে অবশ্যই রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর কাছে পেশ করব।’ সে আবেদন করল, ’আমি একজন সত্যিকারের অভাবী। পরিবারের ভরণ-পোষণের দায়িত্ব আমার উপর, আমার দারুণ অভাব।’ কাজেই আমি তাকে ছেড়ে দিলাম। সকালে (রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর নিকট হাযির হলাম।) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বললেন, ’হে আবূ হুরাইরা! গত রাতে তোমার বন্দী কী আচরণ করেছে?’’ আমি বললাম, ’হে আল্লাহর রসূল! সে তার অভাব ও (অসহায়) পরিবার-সন্তানের অভিযোগ জানাল। সুতরাং তার প্রতি আমার দয়া হলে আমি তাকে ছেড়ে দিলাম।’ তিনি বললেন, ’’সতর্ক থেকো, সে আবার আসবে।’

আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর অনুরূপ উক্তি শুনে সুনিশ্চিত হলাম যে, সে আবার আসবে। কাজেই আমি তার প্রতীক্ষায় থাকলাম। সে (পূর্ববৎ) এসে আঁজলা ভরে খাদ্যবস্তু নিতে লাগল। আমি তাকে বললাম, ’অবশ্যই তোকে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর দরবারে পেশ করব।’ সে বলল, ’আমি অভাবী, পরিবারের দায়িত্ব আমার উপর, (আমাকে ছেড়ে দাও) আমি আর আসব না।’ সুতরাং আমার মনে দয়া হল। আমি তাকে ছেড়ে দিলাম। সকালে উঠে (যখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর কাছে গেলাম তখন) রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাকে বললেন, ’’আবূ হুরাইরা! গত রাত্রে তোমার বন্দী কিরূপ আচরণ করেছে?’’ আমি বললাম, ’ইয়া রাসূলাল্লাহ! সে তার অভাব ও অসহায় সন্তান-পরিবারের অভিযোগ জানাল। সুতরাং আমার মনে দয়া হলে আমি তাকে ছেড়ে দিলাম।’ তিনি বললেন, ’সতর্ক থেকো, সে আবার আসবে।’

সুতরাং তৃতীয়বার তার প্রতীক্ষায় রইলাম। সে (এসে) আঁজলা ভরে খাদ্যবস্তু নিতে লাগল। আমি তাকে ধরে বললাম, ’এবারে তোকে নবী সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম এর দরবারে হাযির করবই। এটা তিনবারের মধ্যে শেষবার। ’ফিরে আসবো না’ বলে তুই আবার ফিরে এসেছিস।’ সে বলল, ’তুমি আমাকে ছেড়ে দাও, আমি তোমাকে এমন কতকগুলি শব্দ শিখিয়ে দেব, যার দ্বারা আল্লাহ তোমার উপকার করবেন।’ আমি বললাম, ’সেগুলি কী?’ সে বলল, ’যখন তুমি (ঘুমাবার জন্য) বিছানায় যাবে, তখন আয়াতুল কুরসী পাঠ ক’রে (ঘুমাবে)। তাহলে তোমার জন্য আল্লাহর পক্ষ থেকে একজন রক্ষক নিযুক্ত হবে। আর সকাল পর্যন্ত তোমার কাছে শয়তান আসতে পারবে না।’

সুতরাং আমি তাকে ছেড়ে দিলাম। আবার সকালে (রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামএর কাছে গেলাম।) তিনি আমাকে বললেন, ’তোমার বন্দী কী আচরণ করেছে?’ আমি বললাম, ’হে আল্লাহর রসূল! সে বলল, ’আমি তোমাকে এমন কতিপয় শব্দ শিখিয়ে দেব, যার দ্বারা আল্লাহ আমার কল্যাণ করবেন।’ বিধায় আমি তাকে ছেড়ে দিলাম।’ তিনি বললেন, ’’সে শব্দগুলি কী?’’ আমি বললাম, ’সে আমাকে বলল, ’’যখন তুমি বিছানায় (শোয়ার জন্য) যাবে, তখন আয়াতুল কুরসী শুরু থেকে শেষ পর্যন্ত ’আল্লাহু লা ইলাহা ইল্লা হুয়াল হাইয়্যুল কাইয়্যুম’ পড়ে নেবে।’’ সে আমাকে আরো বলল, ’’তার কারণে আল্লাহর পক্ষ থেকে সর্বদা তোমার জন্য একজন রক্ষক নিযুক্ত থাকবে। আর সকাল পর্যন্ত তোমার কাছে শয়তান আসবে না।’’ (এ কথা শুনে) তিনি বললেন, ’’শোনো! সে নিজে ভীষণ মিথ্যাবাদী; কিন্তু তোমাকে সত্য কথা বলেছে। হে আবূ হুরাইরা! তুমি জান, তিন রাত ধরে তুমি কার সাথে কথা বলছিলে?’’ আমি বললাম, ’জী না।’ তিনি বললেন, ’সে শয়তান ছিল।’

وَعَنْ أَبِيْ هُرَيْرَةَ قَالَ : وَكَّلَنِي رَسُولُ اللهِ ﷺ بِحِفْظِ زَكَاةِ رَمَضَانَ، فَأتَانِي آتٍ فَجَعَلَ يَحْثُو مِنَ الطَّعَام، فَأَخَذْتُهُ فَقُلْتُ: لأَرْفَعَنَّكَ إِلَى رَسُولِ اللهِ ﷺ قَالَ : إنِّي مُحْتَاجٌ وَعَليَّ عِيَالٌ وَبِي حَاجَةٌ شَدِيدَةٌ فَخَلَّيْتُ عَنْهُ فَأصْبَحْتُ فَقَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ يَا أَبَا هُرَيرَةَ مَا فَعَلَ أَسِيرُكَ البَارِحَةَ ؟ قُلْتُ : يَا رَسُولَ اللهِ شَكَا حَاجَةً وَعِيَالاً فَرحِمْتُهُ فَخَلَّيْتُ سَبِيلَهُ فَقَالَأمَا إنَّهُ قَدْ كَذَبَكَ وَسَيَعُودُ فَعَرَفْتُ أنَّهُ سَيَعُودُ لِقَولِ رَسُولِ اللهِ ﷺ فَرَصَدْتُهُ فَجَاءَ يَحْثُو مِنَ الطَّعَامِ فَقُلْتُ : لأَرْفَعَنَّكَ إِلَى رَسُولِ اللهِ ﷺ قَالَ : دَعْنِي فَإنِّي مُحْتَاجٌ وَعَلَيَّ عِيَالٌ لاَ أَعُودُ فَرحِمْتُهُ فَخَلَّيْتُ سَبِيلَهُ فَأَصْبَحْتُ فَقَالَ لِي رَسُولُ اللهِ ﷺ يَا أَبَا هُرَيرَةَ مَا فَعَلَ أَسِيرُكَ البَارِحَةَ ؟ قُلْتُ : يَا رَسُولَ اللهِ شَكَا حَاجَةً وَعِيَالاً فَرحِمْتُهُ فَخَلَّيْتُ سَبِيلَهُ فَقَالَ إنَّهُ قَدْ كَذَبَكَ وَسَيَعُودُ فَرَصَدْتُهُ الثَّالثَة فَجَاءَ يَحْثُو مِنَ الطَّعَامِ فَأَخَذْتُهُ فَقُلتُ : لأَرْفَعَنَّكَ إِلَى رَسُولِ اللهِ ﷺ وَهَذَا آخِرُ ثَلاَثِ مَرَّاتٍ أَنَّكَ تَزْعُمُ أنَّكَ لاَ تَعُودُ فَقَالَ : دَعْنِي فَإنِّي أُعَلِّمُكَ كَلِمَاتٍ يَنْفَعُكَ اللهُ بِهَا قُلْتُ : مَا هُنَّ ؟ قَالَ : إِذَا أَوَيْتَ إِلَى فِرَاشِكَ فَاقْرَأْ آيَةَ الكُرْسِيِّ فَإِنَّهُ لَنْ يَزَالَ عَلَيْكَ مِنَ الله حَافِظٌ وَلاَ يَقْرَبُكَ شَيْطَانٌ حَتَّى تُصْبِحَ فَخَلَّيْتُ سَبِيلَهُ فَأَصْبَحْتُ فَقَالَ لِي رَسُولُ اللهِ ﷺ مَا فَعَلَ أَسِيرُكَ البَارِحَةَ ؟ قُلْتُ : يَا رَسُولَ اللهِ زَعَمَ أَنَّهُ يُعَلِّمُنِي كَلِمَاتٍ يَنْفَعُنِي اللهُ بِهَا فَخَلَّيْتُ سَبيلَهُ قَالَمَا هِيَ ؟ قُلْتُ : قَالَ لِي : إِذَا أَوَيْتَ إِلَى فِرَاشِكَ فَاقْرَأْ آيَة الكُرْسِيِّ مِنْ أَوَّلِهَا حَتَّى تَخْتِمَ الآيَةَ اللهُ لاَ إلَهَ إِلاَّ هُوَ الحَيُّ القَيُّومُ وَقَالَ لِي : لاَ يَزَالُ عَلَيْكَ مِنَ اللهِ حَافِظٌ وَلَنْ يَقْرَبَكَ شَيْطَانٌ حَتَّى تُصْبِحَ فَقَالَ النَّبِيُّ ﷺ أمَا إنَّهُ قَدْ صَدَقَكَ وَهُوَ كَذُوْبٌ تَعْلَمُ مَنْ تُخَاطِبُ مُنْذُ ثَلاَثٍ يَا أَبَا هُرَيْرَةَ ؟ قُلْتُ : لاَ قَالَذَاكَ شَيْطَانٌ رواه البخاري

وعن ابي هريرة قال : وكلني رسول الله ﷺ بحفظ زكاة رمضان، فاتاني ات فجعل يحثو من الطعام، فاخذته فقلت: لارفعنك الى رسول الله ﷺ قال : اني محتاج وعلي عيال وبي حاجة شديدة فخليت عنه فاصبحت فقال رسول الله ﷺ يا ابا هريرة ما فعل اسيرك البارحة ؟ قلت : يا رسول الله شكا حاجة وعيالا فرحمته فخليت سبيله فقالاما انه قد كذبك وسيعود فعرفت انه سيعود لقول رسول الله ﷺ فرصدته فجاء يحثو من الطعام فقلت : لارفعنك الى رسول الله ﷺ قال : دعني فاني محتاج وعلي عيال لا اعود فرحمته فخليت سبيله فاصبحت فقال لي رسول الله ﷺ يا ابا هريرة ما فعل اسيرك البارحة ؟ قلت : يا رسول الله شكا حاجة وعيالا فرحمته فخليت سبيله فقال انه قد كذبك وسيعود فرصدته الثالثة فجاء يحثو من الطعام فاخذته فقلت : لارفعنك الى رسول الله ﷺ وهذا اخر ثلاث مرات انك تزعم انك لا تعود فقال : دعني فاني اعلمك كلمات ينفعك الله بها قلت : ما هن ؟ قال : اذا اويت الى فراشك فاقرا اية الكرسي فانه لن يزال عليك من الله حافظ ولا يقربك شيطان حتى تصبح فخليت سبيله فاصبحت فقال لي رسول الله ﷺ ما فعل اسيرك البارحة ؟ قلت : يا رسول الله زعم انه يعلمني كلمات ينفعني الله بها فخليت سبيله قالما هي ؟ قلت : قال لي : اذا اويت الى فراشك فاقرا اية الكرسي من اولها حتى تختم الاية الله لا اله الا هو الحي القيوم وقال لي : لا يزال عليك من الله حافظ ولن يقربك شيطان حتى تصبح فقال النبي ﷺ اما انه قد صدقك وهو كذوب تعلم من تخاطب منذ ثلاث يا ابا هريرة ؟ قلت : لا قالذاك شيطان رواه البخاري

হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)
বর্ণনাকারীঃ আবূ হুরায়রা (রাঃ)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
হাদীস সম্ভার
১২/ কুরআন